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Lecture of Dr.Arun Vaghela Sir on "India's Freedom Struggle : 1857-1947"

Click here Webinar on "India's Freedom Struggle : 1857-1947" Sarvoday Higher Education Society's S. D. ARTS & SHAH B. R.  COMMERCE COLLEGE, Mansa , Department of History  is organising a National level webinar on "India's Freedom Struggle : 1857-1947".              Date: 11/6/2020                         Time: 10 :00 a.m. to 11 : 00 a.m. Speaker:  Dr. Arunbhai Vaghela                               Professor and Head  Department  of History      Gujarat University                     Ahmedabad.                          

શામળાજી વિષ્ણુ મંદિર

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શ્રી શામળાજી મંદિર ગુજરાતના ત્રણ મહત્વના કૃષ્ણ તીર્થધામો પૈકીનું એક છે. આ મંદિર સુંદર કલાકૃતિઓ અને ચતુર્ભુજ વિષ્ણુની મનોરમ્ય મૂર્તિ ના કારણે પ્રસિદ્ધ છે. જેમ દ્વારકાને સમુદ્રનું સાનિધ્ય મળ્યું છે તેમ શામળાજી ડુંગરો, મનમોહક વનરાજી, અને મેશ્વો નદીનું સાનિધ્ય ધરાવે છે. મંદિરની અતિ સુંદર શિલ્પ - સ્થાપત્ય યુક્ત રચનાઓમાં કાળિયા ઠાકોરની નયનરમ્ય મૂર્તિ ખૂબ જ આકર્ષક છે. અર્વાચીન કાળમાં આ આદિવાસીઓની કેળવણી માટેની સુંદર આશ્રમ શાળા અને મેશ્વો બંધ તથા ભગવાન કાળિયાઠાકરનું મંદિર જે મોટા હાથીઓની પ્રતિકૃતિ વાળા દરવાજામાં દાખલ થતાં જ સામે વિશાળ ચોક વચ્ચે સપ્તપલ દેવાલય રૂપે પ્રગટ થાય છે. ગુજરાતમાં પંદરમી સદીમાં બંધાયેલા મંદિરોમાં શામળાજી મંદિર સર્વોત્તમ છે .જોકે અત્યારે મંદિરનો જીર્ણોદ્ધાર કરવામાં આવ્યો છે પણ મંદિરના પ્રાચીન સ્વરૂપ તથા સૌંદર્યને જાળવી રાખવામાં આવ્યું છે. ખંડિત શિલ્પોના સ્થાને નવા ઉમેરવામાં આવ્યા છે પણ તે મૂળને અનુરૂપ હોય તેનો ખ્યાલ રાખવામાં આવ્યો છે. મંદિરના બાંધકામમાં ચૌલુક્ય શૈલી જળવાયેલી છે. ગજ્જર અને ઉપર તોરણ વાળા મુખ્ય પ્રવેશદ્વાર સામે જ મંદિરના મુખ્ય પગથિયા - પ્રવેશ દ્વાર - સભાખંડ ...

मध्यकालीन भारत :: प्रमुख पुस्तकें

तारीख़-ए-मसूदी, अबुल फ़ज़ल मुहम्मद बिन हुसैन अल बहरी द्वारा रचित है। इस पुस्तक में महमूद ग़ज़नवी तथा मसूद के इतिहास के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है। इस पुस्तक के द्वारा महमूद ग़ज़नवी के दरबार के जीवन की झलक, और कर्मचारियों के षडयंत्रों का विवरण मिलता है।  तारीख़-ए-मुबारकशाही 'याहिया बिन अहमद सरहिन्दी' द्वारा लिखा गया ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ से तुग़लक़ वंश के बाद सैय्यद वंश के बारे में जानकारी मिलती है। इस काल के इतिहास को जानने का यह एकमात्र स्रोत है।  तबकात-ए-नासिरी पुस्तक 'मिनहाजुद्दीन सिराज' (मिनिहाजुद्दीन अबू-उमर-बिन सिराजुद्दीन अल जुजियानी) द्वारा रचित है। इस पुस्तक में मुहम्मद ग़ोरी की भारत विजय तथा तुर्की सल्तनत के आरम्भिक इतिहास की लगभग 1260 ई. तक की जानकारी मिलती है। मिनहाज ने अपनी इस कृति को ग़ुलाम वंश के शासक नसीरूद्दीन महमूद को समर्पित किया था। उस समय मिनहाज दिल्ली का मुख्य क़ाज़ी था।  चचनामा यह अरबी भाषा में लिपिबद्ध है। इससे मुहम्मद-बिन-कासिम से पहले तथा बाद के सिन्ध के इतिहास का ज्ञान होता है। इसका फारसी भाषा में भी अनुवाद किया गया है। तहकिकात-ए-हिन्द  ...

वेसर या बेसर शैली

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1.नागर और द्रविड़ शैली के मिश्रित रूप को वेसर या बेसर शैली कहते हैं।#समरांगणसूत्रधार में# वाराट शैली ,हार्डी ने #कर्णाट द्रविड़ शब्दावली का प्रयोग मिलता हैं। 2.इस शैली के मंदिर #विन्ध्य पर्वतमाला से #कृष्णा नदी के बीच निर्मित हैं। 3.इस शैली का उद्भव #बौद्ध चैत्यों से हुआ। 4.इन मंदिरों का निर्माण #सातवीं से आठवीं शताब्दी के बीच में शुरू हुआ जो कि 12वीं शताब्दी तक चला। 5.बेसर शैली को #चालुक्य शैली भी कहते हैं। 6.#उत्तरी कर्णाट एवं #दक्षिणी कर्णाट इसकी उपशैली हैं। 7.इस शैली में विमान शिखर छोटा एवं रेखाकृत, छत गजपृष्ठाकर, फ़ैले कलश, मूर्तियों का आधिक्य, अलंकरण परम्परा का बाहुल्य, #प्रदक्षिणामार्ग का अभाव ही इनकी विशेषता है। 8.बेसर शैली के विकास का श्रेय  मुख्यतयः #चालुक्यों व #होयसल शासकों को जाता है। 9.बेसर शैली में शिखर को नागर शैली तरह ,मण्डप को द्रविण शैली के अनुसार बनाया गया है। 10.वेसर शैली के मंदिर, मुलायम व कठोर पत्थरों के मिश्रण से बने हैं। 11.वेसर शैली के प्रमुख मंदिरों में #वृन्दावन का वैष्णव मन्दिर (जिसमे गोपुरम हैं),ऐहोल का मंदिर, बेलूर का द्वार समुद्र मंदिर, सोमनाथपुरम का ...

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द्रविड़ शैली

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1.इसका विस्तार कृष्णा से कन्याकुमारी तक तथा कालखंड- 7वीं से 18वीं शताब्दी तक थी। 2.द्रविड़ शैली की पहचान विशेषताओं में- प्राकार (चहारदीवारी), गोपुरम (प्रवेश द्वार), वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ), पिरामिडनुमा शिखर, मंडप (नंदी मंडप) विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा अष्टकोण मंदिर संरचना शामिल हैं। 3.इस शैली में आमलक एवं कलश के स्थान पर स्तूपिका बनी होती थी। 3.इन मंदिरों में एक जलाशय का सदैव निर्माण किया जाता था। 4.इन मंदिरों के चारों ओर चहारदीवारी होती थी। 5.इनके प्रवेश द्वार भव्य होते थे जिन्हें गोपुरम कहते है।ये गोपुरम मुख्यतः पांड्य शासको की विशेषता हैं। 6.इस शैली के मंदिर काफी ऊँचे तथा विशाल प्रांगण से घिरे होते हैं।प्रांगण में छोटे -बड़े मंदिर, कक्ष तथा विशाल जलाशय होते हैं। 7. इस शैली के मंदिर में चार से अधिक पार्श्व होते है। 8.पल्लवों ने द्रविड़ शैली को जन्म दिया, चोल काल में इसने उँचाइयाँ हासिल की तथा विजयनगर काल के बाद से यह ह्रासमान हुई। 9.तंजौर का बृहदेश्वर मन्दिर इस शैली का सर्वोत्तम मन्दिर हैं। Source..Itihas Both facebook page✍️✍️

नागर शैली

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उत्तर भारत में मंदिर स्थापत्य शैली को नागर शैली कहते हैं यह  उत्तर भारत में #हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक  प्रचलित थी। इस शैली का समय #7वी से 13वीं  शताब्दी तक माना जाता हैं। इसे आर्य शैली , पर्वती शैली (हिमालय क्षेत्र ),लाट शैली (गुजरात ) , कलिंग शैली (उड़ीसा) के नाम से जाना जाता हैं।नागर शैली की एक उपशैली #भूमिज है भूमिज शैली के उदाहरण मालवा, राजस्थान ,गुजरात आदि जगहो से मिलते हैं। नागर मंदिर की आधारभूत योजना वर्गाकार होती है ।वर्तुलाकार आमलक, वक्र रेखीय शिखर एवं स्वास्तिक आकार की योजना नागर शैली की विशेषता है ।शिखर के आधार पर नागर शैली को लैटिना या रेखा प्रसाद, फमसाना एवं बल्लभी प्रकार में विभाजित किया गया है। #इस शैली के मंदिर एक विशाल चबूतरे पर स्थित होते थे ,जिसमे कोई घुमावदार चहारदीवारी नही होती थी। घुमावदार शिखर को गुम्बद कहा जाता हैं। मंदिर का गर्भगृह शिखर के नीचे स्थित होता हैं।नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं। ये मंदिर उँचाई में आठ भागों में बाँटे गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), ...